मंगलवार, 12 जनवरी 2010
उदय दाहिया (स्टैंडअप कॉमेडियन और अभिनेता)
मैं तो शक्ल से ही छटा बदमाश दिखता हूं
अमिताभ फरोग
‘स्टैंडअप कॉमेडियन’ उदय दाहिया अब ‘भाईगीरी’ पर उतर आए हैं। लेकिन एक कहावत है कि;‘शादी की घोड़ी डांस देखे बगैर एक इंच भी नहीं हिलती-डुलती’...ठीक यही स्थिति उदय की है। वे डॉन बनकर भी लोगों को हंसाना नहीं छोड़ेंगे! सिर मत खुजलाइए! दरअसल, उदय दाहिया सुनील पाल के प्रोडक्शन की पहली फिल्म ‘भावनाओं को समझो’ में डॉन के किरदार में दिखाई देंगे। यह फिल्म 15 जनवरी को रिलीज हो रही है। फिल्म के प्रमोशन बाबत उदय सोमवार को भोपाल में थे।
‘भावनाओं को समझो’ उदय की भी पहली फिल्म है। इसमें वे डॉन छोटू छटेला का रोल निभा रहे हैं। उदय चहकते हैं-‘13 जनवरी को मुंबई में फिल्म का प्रीमियर हो रहा है। इसमें गिनीज बुक आॅफ वर्ल्ड रिकार्ड के रिप्रजेंटेटिव भी शामिल हो रहे हैं। यह फिल्म एक रिकार्ड गढ़ने जा रही है। यह इसलिए; क्योंकि इसमें भारत, पाकिस्तान, आस्ट्रेलिया और दूसरे अन्य देशों के 51 स्टैंडअप कॉमेडियंस शामिल हैं। गिनीज बुक के सामने अपना दावा पेश करने हमें बहुत मेहनत करनी पड़ी। सभी कॉमेडियंस को अखबारों की कटिंग्स आदि जैसे पुख्ता सबूत पेश करने पड़े।’
क्या यह ‘बाम्बे टू गोवा’ का सेकेंड पार्ट तो नहीं? उदय दाहिया तर्क देते हैं-‘वो फिल्म अच्छी थी और यह बहुत बेहतर। अगर आपके दिमाग में यह बात बैठी है कि इसमें स्टैंडअप कॉमेडियंस बेशुमार हैं, तो निश्चय ही इसमें फूहड़ता/अश्लीलता होगी, तो आप भ्रम पाले हुए हैं। इस फिल्म को आप दादा-दादी और पोतों सभी के संग बैठकर देख सकते हैं। मेरा दावा है कि सिनेमा हॉल में कोई बगैर हंसे नहीं रह पाएगा।’
क्या उदय डॉन की भूमिका में लोगों को प्रभावित कर पाएंगे? वे मुस्कराते हैं-‘लोग कहते हैं कि; मैं तो शक्ल से ही छटा बदमाश दिखता हूं। वैसे भी मैं डॉन के रूप में लोगों को डराऊंगा नहीं, हंसा-हंसाकर लोटपोट कर दूंगा।’
दर्शक आप लोगों की भावनाओं को क्यों समझें? उदय अपने चुटीले अंदाज में बोलते हैं-‘अरे भाई, समझना ही होगा! आपको शायद पता नहीं होगा कि मैं भोपाल कैसे गिरते-पड़ते पहुंचा हूं। परसों अंडमान में शो था। वहां से मुझे चेन्नई होते हुए मुंबई और फिर ट्रेन से इटारसी पहुंचना था। लेकिन चेन्नई फ्लाइट लेट हो गई और मैं रविवार को करीब 9.30 बजे मुंबई पहुंचा। तक तक ट्रेन रवाना हो चुकी थी। मैंने तत्काल में रिजर्वेशन लिया था। पैसे तो गए ही, मैं भोपाल न पहुंच पाने को लेकर चिंतित था। फिर सोचा प्लेन से भोपाल चलते हैं, तो फ्लाइट सारी बुक मिलीं। मैंने हार नहीं मानी और इंदौर तक फ्लाइट से आया और वहां से टैक्सी से भोपाल पहुंचा। अब तो आप समझ ही गए होंगे कि मैं अपने प्रदेश को लेकर कितना भावुक हूं। इसलिए यहां के लोगों को मेरी भावनाएं समझते हुए फिल्म देखनी ही होगी, क्योंकि मैं उनका अपना हूं।’
कॉमेडी के बदलते तेवर-रंग पर उदय प्रतिक्रया देते हैं-‘कॉमेडी दो तरह की होती है। पहली वो, जिसे सबके बीच बैठकर सुना/देखा जा सके। यह विशुद्ध कॉमेडी है। इसमें लोग खुलकर यानी ठहाका मारकर हंसते हैं। दूसरी वो; जिसमें लोग शर्मनाक हंसी हंसते हैं। इसे फूहड़ कॉमेडी कहते हैं। सबका अपना-अपना टैलेंट और अपने-अपने दर्शक। हां, जिस कॉमेडियन की रचना/प्रस्तुति पर लोग घरों पर चर्चा करें, उसे दुहराएं वो आर्टिस्ट सदैव याद किया जाता है।’
क्या कॉमेडियंस के बुरे दिन आने वाले हैं? उदय दो टूक कहते हैं-‘मुझे नहीं लगता कि कॉमेडी के कभी बुरे दिन आएंगे। दरअसल, कॉमेडी भी म्यूजिक की भांति है। क्लासिकल, सुगम संगीत और वेस्टर्न म्यूजिक सबका अपना-अपना श्रोता वर्ग होता है, ठीक वैसी ही स्थिति कॉमेडी की है। किसी को साफ-सुथरे पंच सुहाते हैं, तो किसी को फूहड़ता में आनंद मिलता है। सबकी अपनी-अपनी पसंद है।’
अपने आसपास के वातावरण से कॉमेडी के पंच चुनने वाले उदय कहते हैं-‘मैं शक्ल से कॉमेडियन कतई नहीं लगता। इसलिए मैं अपनी रचनाओं पर अधिक मेहनत करता हूं।’ उदय कॉमेडी को सबसे टफ टैलेंट मानते हैं-’एक्टिंग हो या सिंगिंग या डांसिंग सबकी कार्यशालाएं होती हैं, लेकिन कॉमेडी नेचुरल टैलेंट है। इसकी कोई ट्रेनिंग नहीं होती। आपको स्वयं अपना मूल्यांकन करना होगा। यदि आपको लगता है कि आपमें लोगों को हंसाने का हुनर है, तो आप शुरू हो जाइए।’
उदय की क्या ख्वाहिशें हैं? वे साफगोई से बोलते हैं-‘इनसान की ख्वाहिशें अनंत होती हैं।...और होनी भी चाहिए, क्योंकि जिस दिन आप संतुष्ट हो गए, उसी दिन से खुद को खत्म समझ लीजिए।’
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