बुधवार, 27 जनवरी 2010

शालीन भनोत (एनडीटीवी इमेजिन के सीरियल ‘दो हंसों का जोड़ा’ के सूर्यकमल)


हरेक आदमी दिल से ‘सूर्यकमल’ है

अमिताभ फरोग
छह वर्ष पहले जबलपुर का एक युवक अपने फैमिली बिजनेस के सिलसिले में मुंबई जाता है। वहां एमटीवी के रियलिटी शो ‘रोडीस’ में पार्टिसिपेट करता है और विनर भी बन जाता है। बस; यही से उसकी जिंदगी एक नया मोड़ ले लेती है। वह बिजनेसमैन से एक्टर बन जाता है। यह किसी मूवी की स्टोरी नहीं है, बात शालीन भनोत की हो रही है। एनडीटीवी इमेजिन पर शुरू हुए राजश्री प्रोडक्शन के सीरियल ‘दो हंसों का जोड़ा’ में लीड कैरेक्टर सूर्यकमल बने शालीन अपने अगले-पिछले लम्हों और इस सीरियल की पृष्ठभूमि पर खूब बतियाए...

शायद आपको याद होगा कि; ‘स्टार प्लस’ के रियलिटी शो ‘नच बलिए-4’ के विनर रहे शालीन और उनकी डांस पार्टनर दलजीत कौर को जब शाहरूख खान 50 लाख रुपए कैश और एक चमचमाती कार बतौर प्राइज दे रहे थे, तब इस विजेता की बॉडी लैंग्वेज में किंग खान-सा जुनून झलक रहा था। अब जबकि; ‘दो हंसों को जोड़ा’ में शालीन की तुलना शाहरूख से की जा रही है, तो शालीन खुश तो बहुत हैं, लेकिन जवाब डिप्लोमेटिक मिलता है-‘दो हंसों का जोड़ा और शाहरूख की फिल्म रब ने बना दी जोड़ी दोनों में खासा अंतर है। यह सच है कि सूर्यकमल में शाहरूख का स्केच नजर आता है, लेकिन दोनों का बैकग्राउंड बहुत अलग है। कहानी डिफरेंट है।’
कहीं शालीन शाहरूख के फैन तो नहीं? वे शब्दों को अल्पविराम देते हैं और फिर हंसते हैं-‘मेरे फेवरेट तो अमिताभ बच्चन हैं। वैसे मैं हर उस आदमी का फैन हूं, जो कुछ हटकर करते हैं, अपनी फील्ड में बेहतर परफर्म करते हैं।’
शालीन और सूर्यकमल में कितना अंतर है? वे स्पष्ट करते हैं-‘वास्तविक जिंदगी में मैं सूर्यकमल जैसा तो कतई नहीं दिखता। हां, दिल से मैं क्या; हर आदमी सूर्यकमल जैसा होता है। दरअसल, हम अपने-अपने कामों में इतने बिजी रहते हैं कि अपने भीतर की सादगी को पहचान ही नहीं पाते। आप कभी 15-20 मिनट एकांत में बैठकर अपनी जीवनशैली का विश्लेषण कीजिए। आप खुद को अंदर से सूर्यकमल जैसा सीधा-सच्चा, इनोसेंट ही पाएंगे या बनाने की सोचेंगे। दुनियाभर के आडंबरों से पीछा छुड़ाकर आप सिम्पल लाइफ जीने की सोचेंगे। मैं भी छोटी-छोटी चीजों में खुशियां ढूंढता हूं, जैसा सूर्यकमल का नेचर है। मैं अपने नाम के अनुरूप शालीन भी हूं और थोड़ा बिंदास भी।’
क्या शालीन सचमुच एक्टर बनना चाहते थे? वे खुलासा करते हैं-‘रियली, मैंने कभी नहीं सोचा था कि मैं एक्टर बनूंगा। यह सब इत्तेफाकन हुआ। लेकिन मैं ईश्वर का शुक्रगुजार हूं, कि उन्होंने मुझे जीवन की सही राह दिखा दी।’
क्या शालीन को वाकई डांसिंग में रुचि है या सिर्फ ‘नच बलिये-4’ के लिए उन्होंने डांस सीखा था? वे बताते हैं-‘मेरी मां सुनीता भनोत कथक नृत्यांगना है, इसलिए बचपन से ही डांस में रुचि रही है। नच बलिये..के माध्यम से मुझे टेब, स्ट्रीट, साल्सा, इंडियन और वेस्टर्न जैसी नृत्यशैलियां भी सीखने को मिलीं। हालांकि डांस रेगुलर तो नहीं कर पाता, लेकिन अवार्ड आयोजनों में मौका मिलता रहता है। मुझे लगता है कि यह हुनर भविष्य में बहुत काम आएगा।’
‘दो हंसों का जोड़ा’ के माध्यम से अपने करियर की ‘ऊंची उड़ान’ भरने जा रहे शालीन अपना आकलन बयां करते हैं-‘मैं खुश हूं कि मुझे हर शेड निभाने का मौका मिला। संगम में मदन के कैरेक्टर में मेरा निगेटिव शेड दर्शकों को खूब पसंद आया। वहीं नागिन में मैंने कनिष्क एवं केशव के रूप में दोहरी भूमिका भी निभाई। सात फेरे, दिल मिल गए, गृहस्थी में भी आप सबका मुझे ढेर-सारा प्यार मिला।’
शालीन ने ‘प्यारे मोहन’ में एक छोटा-सा किरदार भी निभाया था। वे दो टूक कहते हैं-‘काम छोटा हो या बड़ा, उसमें आपका प्रभाव दिखाई देना चाहिए। मैं यही प्रयत्न करता हूं।’
कहते हैं कि शालीन 10-12 घंटे से ज्यादा शूटिंग नहीं करते? वे साफगोई से बोलते हैं-‘राजश्री प्रोडक्शन की विशेषता है कि वे अपने कलाकारों का पूरा ख्याल रखते हैं। इसलिए यह कह सकता हूं कि मैं ही नहीं; राजश्री भी इससे अधिक काम नहीं कराता।’
शालीन भोपाल का जिक्र छेड़ने पर हंसते हैं-‘स्कूल की पढ़ाई के वक्त भोपाल का नाम सुनकर डर-सा जाता था, क्योंकि वहां एग्जाम की कापियां चेक होने जाती थीं। हालांकि यह बचपन की बात है, भोपाल बहुत अच्छा शहर है। मैं दो-तीन बार वहां आया हूं। बहुत हेल्पफुल और प्यारे लोग हैं। मैं अपने शब्दों में कहूं, तो भोपाल सिर्फ मध्यप्रदेश की ही नहीं; प्यार की राजधानी भी है।’
15 नवंबर, 1983 को जबलपुर में जन्मे शालीन की स्कूलिंग ‘नचिकेता स्कूल’ से हुई है। वहीं उच्च शिक्षा उन्होंने मुंबई के मीठीबाई कॉलेज से कम्पलीट की है।

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