शुक्रवार, 1 जनवरी 2010

पंकज त्रिपाठी (सीरियल ‘पाउडर’ के नवेद अंसारी)


सोचा न था डॉन बनूंगा
अमिताभ फरोग
यह बमुश्किल पांच वर्ष पुराना किस्सा है। ठेठ कस्बाई एक युवा ऊंचे ख्वाब लेकर मायानगरी पहुंचता है। तब करोड़ों की आबादी से भरी/ठुंसी मुंबई नगरिया में वह भी भीड़ का हिस्सा मात्र था। एक स्ट्रगलर एक्टर! आज जुहू जैसे पॉश एरिया में उसके 50/50 फीट के होर्डिंग लगे हैं। ‘ऐसा सिर्फ मायानगरी में ही संभव है!’ रविवार से सोनी चैनल पर शुरू हो रहे टेलीविजन इंडस्ट्री के संभवत: सबसे महंगे फिक्शन ‘पाउडर’ में ड्रग माफिया नवेद अंसारी के कैरेक्टर को निभा रहे पंकज बयां कर रहे हैं कि; उन्होंने लाखों स्ट्रगलर्स की भीड़ में कैसे स्थापित की खुद की पहचान?

पंकज एक किस्सा सुनाते हैं-‘मैंने कुछ दिन पहले ही कार खरीदी है। थोड़ा वक्त निकालकर मैं अपनी पत्नी के संग जुहू चौपाटी घूमने निकला। वहां ‘पाउडर’ के प्रमोशन बाबत मेरे बड़े-बड़े होर्डिंग लगाए गए हैं। यह देखकर कितनी खुशी हुई, शब्दों में बयां नहीं कर सकता। आप कल्पना कर सकते हैं कि; पांच वर्ष पहले मैं लोगों से रास्ता पूछते-पूछते जिस प्लेस पर पहुंचा था, वहां आज मेरे बड़े-बड़े होर्डिंगं लगे हुए हैं। शायद इसीलिए मुंबई को मायानगरी कहते हैं!’
बड़े पर्दे पर ड्रामा गढ़ने वाले विशाल भारद्वाज की ओमकारा(2006) में ‘किचलू’ जैसा छोटा-सा किरदार निभा चुके पंकज खुद को कुछ यूं परिभाषित करते हैं-‘मैं कभी छोटे-बड़े रोल के फेर में नहीं पड़ा। हां, इसका विश्लेषण अवश्य किया कि; फलां कैरेक्टर दर्शकों पर कितना प्रभाव छोड़ पाएगा? इसे सौभाग्य कहें, या मेरे काम चुनने का तरीका; चाहे ओमकारा हो या शौर्य, मेरा हर रोल फिल्म का टर्निंग पाइंट रहा है।’
फिल्मों की बात हो या टेलीविजन पर ‘बाहुबली’और अब ‘पाउडर’ का मामला अथवा टाटा टी का ‘जागो रे’ व आइडिया सेल्युलर का ‘नो...’ एड कैम्पेन; पंकज को निगेटिव शेड ही मिले हैं, क्यों? पंकज हंसते हैं-‘शायद मेरी शक्ल विलेन-सी है! खैर, यह अजीब संयोग ही है, लेकिन मैं मुंबई सिर्फ एक्टर बनने आया था, हीरो या विलेन नहीं। मैंने भावना तलवार के निर्देशन में धर्म मूवी की; इसमें भी मैं निगेटिव शेड में था। मेरे लिए यह मूवी कई मायनों में खास थी, पहला मेरा कैरेक्टर बेहद सशक्त था, दूसरा मुझे पंकज कपूर जैसे मझे हुए अभिनेता के संग कार्य करने का मौका मिला। यह मूवी कान्स फिल्म फेस्टिवल-07 और इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल आॅफ इंडिया-07 सभी जगह खूब सराही गई। वैसे मैं हर तरह के रोल निभाना चाहता हूं। मणिरत्नम की रावण में एक हिजड़ा बना हूं। यह बेहद चैलेंजिंग कैरेक्टर है। कुशर प्रसाद का भूत में मेरा कैरेक्टर एक देहाती आदमी का प्रतिनिधित्व करता है। प्रियदर्शन के साथ भी एक मूवी कर रहा हूं। इसमें अक्षय कुमार, अजय देवगन और परेश रावल जैसे स्टार काम कर रहे हैं। प्रियदर्शन के नाम से ही आप आकलन कर सकते हैं कि यह मूवी दर्शकों को हंसाएगी।’
यशराज कैम्प तक पहुंच? पंकज कहते हैं-‘कैम्प कोई भी हो; अगर आपकी एप्रोच सही है, आप टैलेंटेड हैं; तो चांस जरूर मिलता है। मुझे अमिताभ बच्चन अभिनीत तीन पत्ती में एक छोटा-सा रोल आॅफर किया गया था। किन्हीं कारणों से मैंने मना कर दिया। वहां यशराज प्रोडक्शन के हेड कास्टिंग डायरेक्टर अभिमन्यु से मुलाकात हुई थी। उन्होंने मुझे आदित्य चोपड़ा से मिलवाया। चार राउंड में ऑडीसन टेस्ट हुआ, तब कहीं जाकर मुझे नवेद कैरेक्टर के लिए सिलेक्ट किया गया।’
‘अंडरवर्ल्ड’ विषय पर सिनेमा और टेलीविजन दोनों में खूब काम हुआ है, ऐसे में ‘पाउडर’ कितना असरकारक साबित होगा? पंकज उत्साह से बोलते हैं-‘यह शो सिर्फ ड्रग्स माफिया की कहानीभर नहीं है, इसमें मानवीय संबंधों की बुनावट भी देखने को मिलेगी। मुझे यकीन है कि पाउडर टेलीविजन इंडस्ट्री की प्रोडक्शन वैल्यू में आमूल-चूल बदलाव ला देगा। इंडियन टेलीविजन में यह ऐसा पहला शो है, जिसे सिनेमा कैमरे से शूट किया गया है। इसमें एक्चुअल लोकेशंस यूज की गई हैं। दुबई, बैंकॉक, मनाली, दिल्ली, गोवा; कहानी में जो लोकेशन चाहिए थी, हम वहां गए। शो को सिनेमाई भव्यता देने के मकसद से एक एपीसोड शूट करने में 10 दिन तक लगे हैं। आपको जानकर आश्चर्य होगा कि; सीरियल में ऐसी-ऐसी महंगी प्रॉपर्टी इस्तेमाल की गई हैं, जो बड़े बजट की फिल्मों में ही पॉसिबल हैं। आपने कई फिल्मों में लिमोजिन कार देखी होगी। करीब ढाई करोड़ की यह गाड़ी विशेष आर्डर पर तैयार होती है। दुबई में हमारी शूटिंग के दौरान इसे इस्तेमाल किया गया। बजट भी किसी दूसरे शो के मुकाबले दोगुना तक खर्च हुआ है। कहने का आशय यह है कि; टेलीविजन में ऐसा साहस यशराज कैम्प ही कर सकता है। प्रोडक्शन वैल्यू के लिहाज से यह ग्रेट वर्क है। इसके प्रोडक्शन से जुड़ा हर क्रियेटिव पर्सन स्पेशल है। मसलन : इसे लिखा है रामू की कई फिल्मों के लेखक अतुल संभरवाल ने। इसमें ख्यात स्टंट डायरेक्टर श्याम कौशल ने एक्शन की कमान संभाली है। वहीं सिनेमाटोग्राफी केजी गणेशन की है। यानी हर बंदा फिल्म सिनेमा में जबर्दस्त काम कर चुका है।’
भोपाल में फिल्म प्रोडक्शन की संभावनाओं पर बतियाते वक्त पंकज उत्साहित हो जाते हैं-‘भोपाल मेरे दिल के बहुत करीब है। मैंने यहां दो प्रोजेक्ट किए हैं। पिछले वर्ष यहां कुशर प्रसाद का भूत मूवी की शूटिंग करने आया था। मेरा नजरिया है कि; आने वाले 10 वर्ष में मुंबई के बाद भोपाल दूसरा बड़ा फिल्मी हब बनने जा रहा है। भोपाल फिल्म प्रोडक्शन के प्रत्येक पैमाने पर फिट बैठता है। यह शहर सस्ता है, सुगम है और लोकेशंस भी बेशुमार हैं। यहां हर साल दो-तीन प्रोडक्शन हाउस डेरा जमाए रहते हैं। आपको बता दें कि रावण की शूटिंग भी भोपाल में ही प्रस्तावित थी। यह पिछली फरवरी की बात है, तब यहां प्रकाश झा राजनीति और आमिर खान द फॉलिंग की शूटिंग कर रहे थे। इसलिए सारे होटल बुक थे। आखिरकार मणिरत्नम को अपनी करीब 500 यूनिट की टीम को लेकर कोलकाता कूच करना पड़ा। यह फिल्म भी मेगा स्टारर है।’
आपकी नजर में सफलता का पैमाना? पंकज बगैर लागलपेट के बोलते हैं-‘मेरा सोचना है कि दुनिया में असंभव कुछ भी नहीं है। हां, इसके लिए आपको ठीक रास्ते पर चलना होगा, ईमानदारी से अपने कार्य को अंजाम देना होगा। ईमानदारी सिर्फ प्रोफेशन में ही नहीं; लाइफ में भी अत्यंत आवश्यक है। किसी का दिल न दु:खाओ, अपने लक्ष्य को पाने निरंतर कड़ी मेहनत करते रहिए। जो जितना डिजर्व करता है, उसे उतना अचीव अवश्य होता है।’

1 टिप्पणी:

डॉ .अनुराग ने कहा…

यानी जनून हो तो ही किस्मत भी क्लिक करती है