रविवार, 31 जनवरी 2010

वीआईपी (विजय ईश्वरलाल पवार, कॉमेडियन)


मेरी असली आवाज जाने कहां खो गई
अमिताभ फरोग
यह सचमुच मजेदार बात है कि; जो आदमी सैकड़ाभर फिल्म कलाकारों की आवाजें निकालकर अपनी मिमिक्री से लोगों को हंसाता हो-गुदगुदाता हो, कभी-कभार उसे अपनी असली आवाज ढूंढनी पड़ जाती है। सोनी टेलीविजन के चर्चित कॉमेडी शो ‘कॉमेडी सर्कस’ में जबर्दस्त परफर्म करने वाले विजय ईश्वरलाल पवार बोले तो; वीआईपी शनिवार को भोपाल में थे।

मिमिक्री की उलझन? वीआईपी अपने अंदाज में कुछ यूं बयां करते हैं-‘आपको एक मजेदार बात बताता हूं-मेरे दोस्त बोलते हैं कि; वीआईपी एक ऐसा कैरेक्टर है, जो प्यासा भी होगा, तो भी अपनी आवाज में नहीं पुकारेगा। आपको जानकर ताज्जुब होगा कि, कइयों ने मेरी असली आवाज आज तक नहीं सुनी है।’ वीआईपी मिमिक्री करते हैं-‘हाय! मेरी असली आवाज पता नहीं कहां खो गई?’
दुनिया को हंसाने वाले वीआईपी अपना मनोरंजन कैसे करते हैं? वे दिलचस्पी लेकर बोलते हैं-‘मैं अपने दोस्तों से जोक्स सुनता हूं। मूड बना तो जॉनी भाई(लीवर) के घर जाकर बैठ जाता हूं। उनसे खूब बतियाता हंूं, हंसी-मजाक करता हूं। उनसे गुफ्तगू करना अच्छा लगता है।’
वीआईपी जॉनी लीवर से इतने प्रभावित क्यो हैं? वे अपनी भावनाएं व्यक्त करते हैं-‘जॉनी भाई सिर्फ अच्छे कलाकार नहीं, भले इंसान भी हैं। मुहावरे में बोलूं तो; वे ऐसे हरे-भरे पेड़ हैं, जिनको झुकने में कोई संकोच नहीं होता।’
दुनिया को हंसाने वाले अपनी रूठी बीवी को कैसे मनाते हैं? वीआईपी मुस्कराकर बोले-‘करना क्या? बस मिमिक्री शुरू कर देता हूं। कभी हिजड़ा बन जाता हूं, तो कभी शाहरूख!’
वीआईपी कब गंभीर होते हैं? यह सवाल उनकी संवदेनाओं को झकझोर देता है-‘मैं तब बेहद गंभीर हो उठता हूं, जब देखता हूं कि कोई किसी के संग ज्यादती कर रहा है, एट्टीट्यूट दिखा रहा है।’
वीआईपी अपने बीते दिनों को याद करते हुए बताते हैं-‘मुझे अच्छी तरह याद है, जब मेरे पिताजी (ईश्वरलाल) एक आर्गनाइजर के पास मुझे लेकर गए थे। वह आदमी लगभग दुत्कारने की मुद्रा में बोला था- चलो-चलो, यहां ये क्या करेगा? उस वक्त मेरा दिल बहुत दु:खा था। मैं तड़प उठा था। मन ही मन ईश्वर से बोला था- हे भगवान मुझे कामयाब आदमी अवश्य बनाना, ताकि ये व्यक्ति मुझसे खुद आकर प्रोग्राम करने का निवेदन करे। ईश्वर ने ऐसा किया। अब वह आदमी मुझसे कई बार संपर्क करके प्रोग्राम के लिए बोलता है, लेकिन अब मेरे पास समय नहीं है। वैसे आपको बात दूं कि मुझे लाफ्टर से भी रिजेक्ट कर दिया गया था। दरअसल, किसी ने मेरा साथ नहीं दिया। लोग मेरा नंबर मांगते थे, लेकिन वे बहाना बनाकर टरका देते थे।’
...तो वीआईपी क्या अब वाकई वीआईपी हो गए हैं? वे साफगोई से जवाब देते हैं-‘नहीं, मैं आज भी पहले जैसा ही हूं। मैं कोई पीए-वीए नहीं रखता, कोई भी मुझसे सीधे कांन्टेक्ट कर सकता है।’ वीआईपी थोड़े दार्शनिक हो उठते हैं-‘मेरा मानना है कि कभी भी कोई बड़ा आदमी बन सकता है, लेकिन छोटे-बड़े का भेद नहीं रखना चाहिए। सबकी रिसपेक्ट करो।’
वीआईपी ने जब पहली बार ‘हिजड़े’ की मिमिक्री की, तब उन्हें घर से क्या रियेक्शन मिला? वीआईपी हंसते हैं-‘बच्चे बोले- क्या डैडी; स्कूल में सारे दोस्त चिढ़ाते हैं।’
वीआईपी संभवत : ऐसे पहले स्टैंडअप कॉमेडियन हैं, जो सिर्फ मिमिक्री ही नहीं करते; बल्कि तमाम फिल्म कलाकारों की हूबहू ‘बॉडी-लैंग्वेज’ कॉपी कर सकते हैं। वे कहते हैं-‘रियली! स्वप्निल और मैं आलराउंडर हूं। विश्वास न हो, तो किसी की शक्ल बनाकर दिखाऊं?’
अलवर(राजस्थान) के वीआईपी करीब 8 साल के अंतराल में दूसरी बार भोपाल आए हैं। वे शहर को लेकर अपनी प्रतिक्रिया देते हैं-‘यहां सब अपने से लगते हैं।’
‘कॉमेडी सर्कस-2’ के विनर वीआईपी सुर भी खूब साधते हैं। वे किशोर स्टाइल में बोलते हैं-‘मुझे गुनगुनाना अच्छा लगता है। वैसे मेरी फैमिली में संगीत रचा-बसा है। श्रीमतीजी का नाम संगीता है। लड़का मधुर और लड़की का नाम हमने ध्वनी रखा है। यानी वीआईपी की म्यूजिक फैमिली।’
वीआईपी ‘ट्रेडमार्क मिमिक्री’ आर्टिस्ट कहे जाते हैं क्यों? वे गुदगुदाते हैं-‘शायद इसलिए, क्योंकि मेरे कुछ डायलॉग्स की टैगिंग हो गई है। जैसे-शटर अप-डाउन। दरअसल, शूटिंग के दौरान मेरे मुंह से यूं ही निकल गया था- चलो कॉमेडी की दुकान खोलते हैं? लोगों को यह सुनने में मजा आया, तो यह टैग बन गया।’
कॉमेडी में फूहड़ता के लिए वीआईपी पाकिस्तानी कलाकारों को दोषी मानते हैं, क्यों? वे गंभीरता ओढ़ते हैं-‘पाकिस्तानी कलाकारों ने ही कॉमेडी में अश्लीलता फैलाई। लोगों को चस्का लग गया, वोटिंग अच्छी होने लगी, तो प्रोड्यूसर्स भी डिमांड करने लगे।’
वीआईपी की संतुष्टि? वे यह कहते हुए बातचीत को विराम देते हैं-‘एक बारगी पैसा भले ही कम मिले, लेकिन लोगों का रिस्पांस बेहतर मिलना चाहिए।’

1 टिप्पणी:

दिगम्बर नासवा ने कहा…

आपकी बातचीत बहुत अच्छी लगी ......